*सुबह जरूर आएगी*
*अंधेरा छंट जाएगा*
*जहाँ मन भय से मुक्त*
और
*सर गर्व से ऊंचा हो..*
*वो सुबह जरूर आएगी..*
गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर
गीतांजलि
*तीन लाख ग्रामीण डाक सेवकों का जबरदस्त संघर्ष*
*नीति बदलो वरना हम सरकार बदल देंगे*
एम कृष्णन
महासचिव केंद्रीय कर्मचारी परिसंघ
एवं
पूर्व महासचिव एन एफ पी ई
तीन
लाख ग्रामीण डाक सेवकों की अभूतपूर्व हड़ताल *सोमवार को 14वें दिन में
प्रवेश कर जाएगी*। इसके असर से ग्रामीण डाक सेवाएं ठप्प हो गई हैं। *155000
में से 129500* ग्रामीण *डाकघर पूरी तरह से बंद* पड़े हैं।जीडीएस अपने लिए
*आसमान से चाँद लाने की मांग नही कर रहे हैं।*
वे
अपने न्यायोचित वेतन संशोधन की माँग कर रहे हैं। यदि 32 लाख विभागीय
कर्मचारियों का वेतन संशोधन 7वें वेतन आयोग की रिपोर्ट देने के आठ महीनों
के भीतर लागू किया जा सकता है तो फिर तीन लाख अल्प वेतन भोगी जीडीएस
कर्मचारियों के वेतन संशोधन में18 महीनों के अनुचित और अन्यायपूर्ण विलंब
का औचित्य क्या है? जब जीडीएस के वेतन संशोधन की बात आती है सिर्फ तभी
विभाग में संसाधनों में कमी का रोना क्यों रोया जाता है?क्या जीडीएस इस कमी
के लिए जिम्मेदार हैं? नहीं बिल्कुल नहीं।
डाक
विभाग के *देवता* और केंद्र सरकार *अठारह महीनों* से मदहोशी की नींद में
डूबे हुए हैं और गरीब *जी डी एस कर्मचारी सिर्फ इंतजार..इंतजार..
और..इंतजार ही कर रहे हैं..*।यह हड़ताल लंबे समय व्यग्रतापूर्वक प्रतीक्षा
कर रहे हासिये पर डाल दिये गए कर्मचारियों के आक्रोश और असंतोष के विस्फोट
का स्वाभाविक परिणाम था।
फिर
अचानक *सोये हुए देवता* जाग उठे।जैसे नादान बच्चों को चाकलेट बांटी जाती
है, *सभी तरफ से सभी विभाजनकारी भाषाओं में आंदोलन खत्म करने की अपीलों पर
अपीलें आने लगीं।* लेकिन *96% ग्रामीण डाक सेवक पूरी तरह एकजुट होकर अपने
संघर्ष में जुटे हुए हैं।*
उन्होंने
प्रण लेकर यह घोषणा की है कि वे *अपने सम्मान और स्वाभिमान का कभी समर्पण
नहीं करेंगे भले ही हड़ताल लंबे चलने की हालत में उन्हें या उनके परिवार को
भूखा रहने या मरने की ही नौबत क्यों न आ जाये।*
वे
जानते हैं कि हमारे देश को आजादी मिलने के पहले अनेकों ने अपनी जिंदगी के
बलिदान सहित बहुत सारी कुर्बानियां दी थीं। *महात्मा गांधी* ने अंग्रेजों
को साफ़ कहा था *तुम मुझे मार सकते हो लेकिन तुम मुझे मजबूर करके सरेंडर नही
करवा सकते।"*
वे जानते
हैं कि *दक्षिण अफ्रीका* में सबसे भयावह *नस्लभेद व्यवस्था* को वैधानिक रूप
से प्रतिबंधित करने में भी अनगिनत ने अपनी जिंदगी और सर्वस्व न्योछावर
किया था।
*नेल्सन मंडेला* ने उन्हें सिखाया कि *न कभी हिम्मत हारो और न ही कभी समर्पण करो।*
वे जानते हैं कि *अमेरिका* में *दास प्रथा* को कानूनन खत्म करने के पहले बहुतों ने अपनी जिंदगी और सबकुछ बलिदान किया था।
*मार्टिन लूथर किंग* ने उनसे कहा था कि *दासता से मुक्ति मेरा एक सपना है और वो सपना सच हुआ।*
*जीडीएस
व्यवस्था एक भिखमंगी व्यवस्था है और यह एक बंधुआ मजदूरी और गुलामी के
अलावा और कुछ भी नहीं है*।ग्रामीण डाक सेवकों का नायकों जैसा यह संघर्ष
निश्चित रूप से गुलामी की प्रणाली, जो कि भारतीय लोकतंत्र के चेहरे पर
*काले धब्बे* के समान है के अंत की शुरुआत है।
वे
जीडीएस और विभागीय कर्मचारी(यद्यपि केवल कुछ राज्यों में)जिन्होंने समाज
के इस सबसे निचले तबके के लोगों के उत्थान के लिए आहूत इस ऐतिहासिक संघर्ष
में भाग लिया, वे *इतिहास में सदा याद किये जायेंगे और उनकी कुर्बानी बेकार
नहीं जाएगी।*
सरकार
समर्थित नौकरशाही में बैठे हुए अधिकारी यह प्रचार कर रहे हैं कि जीडीएस
ने,जिसमें चारों यूनियनें शामिल हैं, *अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की बहुत
बड़ी गलती और अक्षम्य अपराध किया है।* हम ऐसे लोगों को एक पुरानी
शिक्षाप्रद कहावत याद दिलाना चाहते हैं कि *यदि आपके दरवाजे पर कोई भिखारी
आये और आप उसको कुछ भी पैसा देना नहीं चाहते तो मत दीजिये लेकिन अपने
कुत्तों को उसे काटने के लिए मत दौड़ाइये।* जीडीएस को अपनी तकदीर के लिए खुद
लड़ने दीजिये।सरकार उनके अधिकार को मान्यता दे या ना दे। *यह संघर्ष इतिहास
का अंत नही है और ना ही यह अंतिम संघर्ष है*। *जब तक अन्याय और भेदभाव
रहेगा,हड़तालें और विरोध भी बार बार उसी तरह से पैदा और आयोजित होते रहेंगे
जैसे फीनिक्स पक्षी अपने पूर्वजों की राख से उत्पन्न हो जाता है।*
अब
गेंद सरकार और डाक विभाग के पाले में है। इसे कैसे खेलना है इसका फैसला
उनको ही करना है। एक के बाद एक पैम्फलेट जैसी अपीलें बंटवाने की जगह
*हड़ताली जीडीएस यूनियनों को बातचीत के लिए बुलाने और एक सम्मानजनक समझौते
तक पहुंचने में गलत क्या है?* पोस्टल बोर्ड की उच्च नौकरशाही की मानसिकता
आखिर है क्या?
क्या वे पुराने दिनों के मदहोश
जमींदारों की तरह सोच रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि *जीडीएस के नेतागण
केवल उनकी आज्ञा का पालन करेंगे और उनसे कोई सवाल नही करेंगे।* *माफ
कीजिये!वे बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। उन्हें दीवार पर बड़ी स्पष्टता से लिखी
इबारत को समझना चाहिए।* केवल परस्पर विश्वास और सदभावना ही हड़ताली जीडीएस
कर्मचारियों के दिलोदिमाग में आपसी बातचीत के माध्यम से समस्याओं के समाधान
का भरोसा पैदा कर सकता है।
हमें
आशा है कि ताकत के दम पर दमन करने की प्रवृत्ति के ऊपर सद्भाव की सदवृति
विजयी होगी। *हम यह पूरी तरह से साफ कर देना चाहते हैं कि दमन,उत्पीड़न अथवा
बलपूर्वक किसी भी तरीके से हड़ताल को तोड़ने या कुचलने का कोई भी प्रयास*
परिस्थितियों को केवल जटिल ही करेगा और *समस्त केंद्रीय शासकीय कर्मचारी
किसी भी कीमत पर हड़ताली ग्रामीण डाक सेवकों की सुरक्षा और समर्थन के लिए
बाहर आने पर मजबूर होंगे।*
अनुवाद:-यशवंत पुरोहित,
महासचिव,सीओसी मप्र।
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